Friday, February 11, 2011

कविता : ताकी बहरे भी सुनले मेरी आवाज को

हम तो कह के रहेँगे सच्चाई ,
ताकी बहरे भी सुन लेँ मेरी आवाज को
कितने कतरे बहे हैँ खून के इस आजादी के लिए,इस बात को

कुछ अपने,कुछ बाहरी लोग डरा रहे है इस देश को
कब पहचानेगे हम पापियो के भेष को
जब तक रहेँगे गांधी,भगत जैसे विर,कुछ नही होगा देश के ताज को
हम तो कह के रहेँगे सच्चाई ,
ताकी बहरे भी सुन लेँ मेरी आवाज को
कितने कतरे बहे हैँ खून के इस आजादी के लिए,इस बात को

तेरा भारत,मेरा भारत है ये हम सबका भारत
इसको,उसको सब दूश्मन को,देगा जवाब अपना भारत
अब भी संभल जाओ ऐ गद्दारोँ,छोङ न देँ हम सब्र के बाध को
हम तो कह के रहेँगे सच्चाई ,
ताकी बहरे भी सुन लेँ मेरी आवाज को
कितने कतरे बहे हैँ खून के इस आजादी के लिए,इस बात को

Wednesday, February 9, 2011

घोटालो का नोबेल पुरस्कार दो

मुझे लगता है की अब वो दिन दूर नही जब सरकार घोटालो पर छूट देगी , दूरर्दशन का वो एड तो आपने देखा ही होगा 'दाग अच्छे हैँ' ,बस अब कुछ नेता लोग इसी तर्ज पर घोटाले पे घोटाले किए जा रहे हैँ । क्या हुआ अगर दाग लगने से कुछ अच्छा होता है 'तो दाग अच्छे है ना' ,एक की जगह चार गाङीया ,घर के बजाए बङे बंगले मे शिफ्ट हो गए , आखिर हो भी क्यो न ये तो सुपर पावर है ,चाहेँ राष्ट्रमंडल खेल हो ,टूजी स्पेक्ट्रम ,देवास मल्टीमिडीया को इसरो द्वारा आवंटन ,चारा घोटाला ,बोफोर्स घोटाल आखिर कितने नाम गिनाऊ , मै तो कहता हूँ घोटाले के क्षेत्र मे भी नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए , ये लोग वहाँ से भी सोने-चादी ढूढ लाएगेँ । और फिर सोचिए क्या नजारा होगा कलमाङी ,और राजा किसको मिलेगा भ्रष्टाचार और घोटाले का नोबेल , चलिए कोई बात नही अब बात महगाई कि की जाए तो अखबारो से हाइट बढाने वाले विज्ञापन हटवा दो क्योकिँ अब आप अपना नाम महंगाई रख लो ,बङे तेजी से बढेगी ।

Saturday, January 29, 2011

ये तो दूनिया है भईया !

हरिद्वार उत्तराखंड राज्य का एक खूबसूरत सहर है जिसे धर्म नगरी कहा जाता है । माँ गंगा का पावन उदगम भी तो यही है ,चारो तरफ से पहाङो से घिरे अपनी एक अलग पहचान लिये इह सहर की एक ऐसी पहचान जो सबके आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है । एक दुसरे के विपरीत दिशाओँ के पहाङो पर स्थित माँ चंडी देवी और नैना देवी की छटा निराली है,धर्म का केन्द्र बन चुकी इस नगरी मे हर रोड ,हर बाजार मे आपको किसी-न-किसी हिन्दू देवी देवताओँ के मंदीर अवश्य मिल जायेँगेँ । अगर आप हरिद्वार आएँ और गंगा जी के पावन लहरोँ मे गोता न लगाऐँ ये तो हो ही नही सकता ,जब मै रोडवेज मे बैठा हुआ लव कुश घाट पहुंचा तो वो नजारा देख कर हर हर गंगे की इच्छा अधुरी रह गई ,लोग धुप दिप ,कचरा ,गंदगी गंगा जी मे डाल रहे हैँ । सबको पवित्र करने वाली गंगा आखिर अपनी बात कहे तो कहे किसे ,इतना कुछ होने के बाद भी गंगा की धाराओँ की वो चंचलता ,कम नही हो रही है ।आखिर राष्ट्रीय नदी के रुप मे घोषित गंगा कब तक मैली रहेगी , हरिद्वार मे सङक के किनारे बने बङे होटलोँ ,ढाबोँ ,दुकानोँ जो इस सहर मे रहकर सिर्फ इसी गंगा नदी की वजह से कमाते हैँ , उस गंगा को स्वच्छ रखने मे थोङा योगदान भी नही दे सकते ,क्या गंगा जी को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी केवल सरकार की है ? लाखो-करोङो रुपये खर्च होने के बावजुद भी गंगा मैली क्योँ है?

Wednesday, October 6, 2010

तेरे बिन क्या हालत होगी ,ये सोच नही सकता-एक गजल

साथियोँ ,जब कोई परिँदा पर मारने मे निपुण हो जाता है तो उसे लगता है कि जैसे सब कुछ मिल गया हो
दिल कि नजरोँ को उदास मत करना
मन के उचे सपनो को निराश मत करना
देर से ही सही पर मंजील पर तो पहुँचोगे,
इसलिए जल्दबाजी मे कोई काम मत करना

शेर अपने आप ही शब्दोँ का मतलब बयां कर देते हैँ एक ऐशा ही शेर आपके पेसे खिदमत है
मंजील की तलाश किसे नही होती है
उम्मीदोँ कि चांह किसे नही होती है
यकीं हो तो कदमो मे दूनिया,
वरना सपनो कि उङान किसे नही होती हैँ ।

अब आपके सामने एक रचना प्रस्तुत है जिसे आप गजल या गीत का नाम दे सकते हैँ

तेरे बिन क्या हालत होगी,ये सोच नही सकता
तेरे जैसा दुजा ,मै खोज नही सकता
तेरे बिन क्या हालत होगी,ये सोच नही सकता
तेरे जैसा दुजा ,मै खोज नही सकता

कहाँ से लाँउंगा मै वो चाँद का टुकङा
जिँदा रहता हूँ देखकर जिसे ,वो मुखङा
अपनी किस्मत को भी तो मै कोस नही सकता
तेरे बिन क्या हालत होगी,ये सोच नही सकता



जब उङने लगे बेवफाई के बादल
क्या देखूं मै तेरो नैनो के काजल
भरी बरसात मे खूद को बोर नही सकता
तेरे बिन क्या हालत होगी,ये सोच नही सकता




तेरे होठोँ से सुन लूँ वो प्यार का तराना
ऐसा सुन सकूं जो बताना
अफवाहोँ के बजार मे खुद को बेच नही सकता

तेरे बिन क्या हालत होगी ,ये सोच नही सकता-एक गजल

Saturday, September 11, 2010

बनो अहिँसा के साथी ,सदा विजय ने साथ निभाया-एक गजल

तुमने हमको चलना सिखलाया ,तुमने ही ये है पाठ पढाया

बनो अहिँसा के साथी ,सदा विजय ने साथ निभाया निभाया
क्या मिलेगा छल से मानव ,क्यो स्वार्थय को तूने अपनाया
नजर प्यार की कर ले तू ,क्यो दर्द से तू घबराया

प्यार के दो बोल बोलऽ ले, क्या जाना है तेरा

क्योँ करते हो भेद रंग मे,क्या तेरा क्या मेरा
जिसने सबको प्यार दिया,जिसने सबको अपनाया
बनो अहिँसा के साथी ,सदा विजय ने साथ निभाया

तुमने हमको चलना सिखलाया ,तुमने ही ये है पाठ पढाया

बनो अहिँसा के साथी ,सदा विजय ने साथ निभाया निभाया

बनो अहिँसा के साथी ,सदा विजय ने साथ निभाया-एक गजल